दिल्ली। पैगंबर विवाद में बीजेपी से निलंबित नेता नूपुर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा दूसरी बार खटखटाया तो जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला का मिजाज बिल्कुल उलट दिखा। पहली बार में दोनों जज जितने उग्र औऱ गरम दिखे थे, इस बार उतने ही नरम दिखाई दिए। दोनों जजों की पीठ ने इस बार नूपुर की याचिका पर सुनवाई के दौरान पिछली सुनवाई के दौरान कही गई बातों का खुद ही जिक्र किया। पीठ ने कहा कि संदेश सही नहीं गया, लेकिन जज कभी नहीं चाहते थे कि आपको दर-दर की ठोकरें खानी पड़े।
दोनों जजों की बेंच ने कहा हम कभी नहीं चाहते थे कि आपको या आपके परिवार को किसी तरह के खतरे में डाला जाए। कहा हमें तथ्यों को सही करना चाहिए। शायद हम सही ढंग से नहीं बता पाए, लेकिन हम कभी नहीं चाहते थे कि आप राहत के लिए हर अदालत में जाएं।
शीर्ष अदालत की इसी पीठ ने पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी को लेकर गत 1 जुलाई को नूपुर शर्मा की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था कि उन्होंने अपनी बेलगाम जुबान से पूरे देश को आग में झोंक दिया है और देश में जो हो रहा है उसके लिए वह अकेले जिम्मेदार हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को नुपुर शर्मा को पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी को लेकर कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों/शिकायतों के संबंध में 10 अगस्त तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने शर्मा को भविष्य में दर्ज हो सकने वाली प्राथमिकियों/शिकायतों में भी दंडात्मक कार्रवाई से राहत दे दी है।
10 अगस्त तक नूपुर पर कार्रवाई नहीं
शीर्ष अदालत कभी नहीं चाहती थी कि नूपुर शर्मा राहत के लिए हर अदालत का रुख करें, पीठ ने उनकी याचिका पर केंद्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों को नोटिस जारी किया, तथा सुनवाई की अगली तारीख 10 अगस्त तय की, पीठ ने कहा, इस बीच एक अंतरिम उपाय के रूप में यह निर्देश दिया जाता है कि 26 मई 2022 के प्रसारण के संबंध में दर्ज प्राथमिकियों/शिकायतों या भविष्य में दर्ज की जा सकने वाली ऐसी प्राथमिकी/शिकायतों में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
नूपुर शर्मा की दलील पर
पीठ ने कहा कि सिंह की दलील से जो बात सही ढंग से समझ में आती है वह यह है कि याचिकाकर्ता दिल्ली हाई कोर्ट जैसी किसी एक अदालत में जाना चाहती हैं। पीठ ने कहा हम कभी नहीं चाहते थे कि आपको या आपके परिवार को किसी तरह के खतरे में डाला जाए। पीठ ने कहा हमारी चिंता यह है कि याचिकाकर्ता कानूनी उपाय का लाभ उठाने से वंचित नहीं हो। हम इस आशय का आदेश पारित करेंगे।